जिम्मेदारी वह एहसास है जो हमारे कार्य को वजूद देता है और हमें पहले से भी अधिक अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। एक व्यक्ति की जन्म लेने से लेकर मृत्यु होने तक अनेकों जिम्मेदारियां होती हैं जिनकी धुप-छाव में वह अपना जीवन व्यतीत करता है। जीवन के हर पड़ाव पर एक व्यक्ति अलग-अलग जिम्मेदारियों से घिरा होता है।
समाज को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करने वाले बीइंग रिस्पॉन्सिबल के संस्थापक श्री अतुल मालिकराम बताते हैं कि जिम्मेदारी वह दवाई है जो इंसान को कभी थकने नहीं देती। बच्चे से लेकर वृद्ध तक सभी इंसान जिम्मेदारियों के घेरे में अपना जीवन जीते हैं। एक बच्चे की जिम्मेदारी होती है कि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त करके अपने माता-पिता के सपनों को साकार करे। एक युवा की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने परिवार का सहारा बनकर उनसे कन्धा मिलाकर चले, उनकी जरूरतों को पूरा करे। लेकिन इन सबसे अलग, क्या बुजुर्गों की भी कोई जिम्मेदारी होती है?
श्री अतुल मालिकराम के मुताबिक उम्र के इस पड़ाव में आने के बाद भी बुजुर्गों की काफी सारी जिम्मेदारियां होती हैं, जिनका एहसास होना उनके लिए काफी जरुरी है। वे बताते हैं कि आज का दौर कमाई का है, जिसमें लगभग हर दंपत्ति अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अधिक धन कमाना चाहती है। इसलिए जब माता-पिता दोनों ही कमाने के लिए घर से बाहर चले जाते हैं, तो बच्चे काफी हद तक घर में अकेला महसूस करते हैं। इस स्थिति में घर के बुजुर्गों की जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों के अकेलेपन को दूर करें, उनसे बातचीत करें, उनके साथ समय बिताएं, उनके साथ खेलें। ऐसे में उन्हें भी अपना समय आसानी से काटने की वजह मिल जाती है। इन जिम्मेदारियों के चलते बुजुर्ग घर के बच्चों को कहानियां सुनाने, उनके साथ बच्चा बनकर जीने, शिक्षा के अलावा उन्हें परिवार, समाज, संस्कृति, आध्यात्म आदि का ज्ञान देने का कार्य करते हैं। यह समय उनमें नजदीकियां लाने का कारण बनता है और वे एक-दूसरे के मित्र बन जाते हैं। इस प्रकार जिम्मेदारी का यह एहसास बुजुर्गों में एक नई |