खोदा पहाड़ निकली चुहिया |
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एक घना जंगल था, पेड़ों के अलावा वहां बहुत सी गुफाएँ भी थीं। एक छोटे से पहाड़ पर बनी एक गुफा में चोरों के एक गिरोह ने शरण ली हुई थी। वो सब वहीं इकठ्ठा होते थे और वहीं अपना सारा चोरी का माल छुपाते थे। जब ये गिरोह कहीं डाका डालने जाता तो एक चोर पीछे से उस गुफा में ज़रुर रहता था, रखवाली के लिए।
एक दिन सारे चोर डाका डालने गए थे और नियम के मुताबिक़ एक चोर वहीं रहकर रखवाली कर रहा था। शाम के बाद का समय था ख़ाली गुफा में से खन-खन, छन-छन की आवाज़ उस चोर को सुनाई दी। जंगल में तो तरह-तरह की आवाज़ें आती ही रहती हैं उसने सोचा ऐसे ही कोई पंछी गाना गा रहा होगा। |
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काटो मत फुँफकारो ज़रूर |
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पुराने ज़माने की बात है एक गाँव तक जाने वाले रास्ते में झाड़ियों के झुरमुट के बीच एक बाम्बी थी। बाम्बी यानी साँप/नाग का घर, उस घर में एक काला नाग रहता था जो आते जाते गाँव के कई लोगों को डस चुका था। गाँव के लोगों ने डर के मारे वहाँ से गुज़ारना ही बंद कर दिया, अब उन्हें आने जाने के लिए लम्बा रास्ता तय करना पड़ता था मगर अपनी जान सबकी प्यारी होती है। |
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लाठी भी कमाल की चीज़ है, तभी तो कहावत बनी – सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे |
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एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था उसके खेत में अक्सर आवारा पशु घुस आते थे। वो एक को भागता तो कोई दूसरा घुस आता, वो उन्हें भगाते-भगाते परेशान हो जाता था। एक दिन जब वो बहुत ज़्यादा परेशान दिख रहा था तो उसके पड़ोसी किसान गोपाल ने उससे पूछा – क्या बात है रामू कई दिनों से तुम बहुत परेशान नज़र आ रहे हो।
रामू ने बड़े ही कातर स्वर में कहा – क्या बताऊँ भैया इन जानवरों ने तो मेरा सारा खेत बिगाड़ कर रख दिया है, न जाने कहाँ से आ जाते हैं ?! जब उसने अपने पडोसी को अपनी अपनी सारी रामकहानी सुनाई तो उसने सलाह दी कि थोड़े पैसे जोड़ कर एक अच्छी सी लाठी ले आओ, एक आध बार लाठी दिखाओगे तो जानवर खेत में घुसना बंद कर देंगे। आईडिया उसे भी पसंद आया और फिर वो पैसे जोड़ने में जुट गया। |
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टेढ़ी खीर का रहस्य |
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टेढ़ी खीर कहावत की कहानी
कहानी कुछ इस तरह है के दो भिखारी थे, दोनों साथ ही रहते थे। उनमें से एक जन्म से ही देखने में असमर्थ था, यानी ब्लाइंड था, दृष्टिहीन था। दोनों रोजाना सुबह-सुबह भीख मांगने निकल पड़ते और शाम होने पर वापस अपने ठिकाने पर लौट आते। दोनों अपने पूरे दिन की बातें अक्सर एक दूसरे को सुनाया करते। |
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How to Book an Escort in London for a Dinner Date |
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ख़ुर्शीद बानो 40s की पहली लीडिंग स्टार सिंगर-एक्टर |
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14 अप्रैल 1914 को लाहौर में जन्मी ख़ुर्शीद बानो का असली नाम था – इरशाद बेगम। उन्होंने कोलकाता के मदन थिएटर्स की फ़िल्म “लैला मजनूँ” से अपने करियर की शुरुआत की। फिर शकुंतला, चित्र बक़ावली(32), हठीली दुल्हन(31), मुफ़लिस आशिक़(32) जैसी कुछ फ़िल्मों में उन्होंने सपोर्टिंग रोल्स किए। जब लाहौर में फ़िल्मी हलचल बढ़ने लगी तो वो अपनी क़िस्मत आज़माने लाहौर पहुँच गईं। वहाँ उन्होंने आर एल शौरी की फ़िल्म राधे-श्याम में काम किया इसके बाद स्वर्ग की सीढ़ी में हेरोइन के रूप में परदे पर दिखीं मगर इन फ़िल्मों से उन्हें कोई फायदा नहीं पहुँचा। उस वक़्त की उनकी फ़िल्में कामयाब नहीं हो पाईं इसलिए उन्होंने 1935 में मुंबई का रुख किया। |
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