लाठी भी कमाल की चीज़ है, तभी तो कहावत बनी – सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे |
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एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था उसके खेत में अक्सर आवारा पशु घुस आते थे। वो एक को भागता तो कोई दूसरा घुस आता, वो उन्हें भगाते-भगाते परेशान हो जाता था। एक दिन जब वो बहुत ज़्यादा परेशान दिख रहा था तो उसके पड़ोसी किसान गोपाल ने उससे पूछा – क्या बात है रामू कई दिनों से तुम बहुत परेशान नज़र आ रहे हो।
रामू ने बड़े ही कातर स्वर में कहा – क्या बताऊँ भैया इन जानवरों ने तो मेरा सारा खेत बिगाड़ कर रख दिया है, न जाने कहाँ से आ जाते हैं ?! जब उसने अपने पडोसी को अपनी अपनी सारी रामकहानी सुनाई तो उसने सलाह दी कि थोड़े पैसे जोड़ कर एक अच्छी सी लाठी ले आओ, एक आध बार लाठी दिखाओगे तो जानवर खेत में घुसना बंद कर देंगे। आईडिया उसे भी पसंद आया और फिर वो पैसे जोड़ने में जुट गया। |
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टेढ़ी खीर का रहस्य |
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टेढ़ी खीर कहावत की कहानी
कहानी कुछ इस तरह है के दो भिखारी थे, दोनों साथ ही रहते थे। उनमें से एक जन्म से ही देखने में असमर्थ था, यानी ब्लाइंड था, दृष्टिहीन था। दोनों रोजाना सुबह-सुबह भीख मांगने निकल पड़ते और शाम होने पर वापस अपने ठिकाने पर लौट आते। दोनों अपने पूरे दिन की बातें अक्सर एक दूसरे को सुनाया करते। |
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How to Book an Escort in London for a Dinner Date |
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ख़ुर्शीद बानो 40s की पहली लीडिंग स्टार सिंगर-एक्टर |
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14 अप्रैल 1914 को लाहौर में जन्मी ख़ुर्शीद बानो का असली नाम था – इरशाद बेगम। उन्होंने कोलकाता के मदन थिएटर्स की फ़िल्म “लैला मजनूँ” से अपने करियर की शुरुआत की। फिर शकुंतला, चित्र बक़ावली(32), हठीली दुल्हन(31), मुफ़लिस आशिक़(32) जैसी कुछ फ़िल्मों में उन्होंने सपोर्टिंग रोल्स किए। जब लाहौर में फ़िल्मी हलचल बढ़ने लगी तो वो अपनी क़िस्मत आज़माने लाहौर पहुँच गईं। वहाँ उन्होंने आर एल शौरी की फ़िल्म राधे-श्याम में काम किया इसके बाद स्वर्ग की सीढ़ी में हेरोइन के रूप में परदे पर दिखीं मगर इन फ़िल्मों से उन्हें कोई फायदा नहीं पहुँचा। उस वक़्त की उनकी फ़िल्में कामयाब नहीं हो पाईं इसलिए उन्होंने 1935 में मुंबई का रुख किया। |
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अमीरबाई कर्नाटकी कन्नड़ कोकिला के नाम से मशहूर गायिका-अभिनेत्री |
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अमीरबाई कर्नाटकी ने क़रीब 150 फ़िल्मों में 380 गाने गाए उन की कन्नड़ और गुजराती पर बहुत गहरी पकड़ थी। उनका गाया भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे” ये गांधी जी को बहुत प्रिय था। बहुत से यादगार गीत गाने वाली अमीरबाई कर्नाटकी का जन्म 1912 में कर्नाटक के बीजापुर में हुआ। उनकी माँ अमीना बी और पिता हुसैन साब थिएटर कंपनी में काम करते थे, उसी संगीत और नाटक के माहौल में अमीरबाई की परवरिश हुई। उनके कई अंकल आंटी थिएटर में बतौर एक्टर-म्यूजिक डायरेक्टर अपनी साख बना चुके थे। अमीरबाई कर्नाटकी छोटी ही थीं जब उन के पिता की मौत हो गई इसीलिए उनकी और उनके परिवार की देख-रेख उनके एक अंकल ने की। |
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ज़ोहराबाई अम्बालेवाली |
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शुरुआती दौर में फ़िल्म संगीत में शुद्ध शास्त्रीय गायन का चलन था और उस दौर में हस्की भारी नेज़ल टच लिए आवाज़ें सुनाई देती हैं। इन्हीं आवाज़ों में एकदम अलग हटकर आवाज़ थीं ज़ोहराबाई खातून की जिनका जन्म 1918 में अम्बाला में हुआ। वो छोटी सी थी तभी उनके दादाजी ने उनकी गायन प्रतिभा को पहचाना और उसे आगे बढ़ने में पूरा पूरा सहयोग दिया। उस ज़माने के नामी उस्ताद उस्ताद ग़ुलाम हुसैन ख़ाँ और उस्ताद नासिर हुसैन ख़ाँ से ज़ोहराबाई अम्बालेवाली को तालीम दिलाई गई। बाद में ज़ोहराबाई ने आगरा घराना से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली।
मात्र 13 साल की उम्र में ज़ोहराबाई ने HMV के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया जो की एक ठुमरी थी। और उनका पहला हिट गाना आया 14 साल की उम्र में, उस गाने के बोल थे – छोटे से बलमा मोरे अंगना में गिल्ली खेले। उनका ये गाना रातों रात हिट हो गया और उसके साथ ही ज़ोहराबाई अम्बालेवाली का नाम भी मशहूर हो गया। तब तक ज़ोहराबाई ने रेडियो पर भी गाना शुरु कर दिया था और वो ज़्यादातर पक्के राग, ठुमरी-दादरा या सेमी क्लासिकल गीत ही गाया करती थीं। |
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